Monday, February 1, 2010

A Poem Written by Me On the Migration of Persons From "Gaon Se Sahar" :-

जिंदगी तेरी चाह में

जिन्दगी, तूने मुझे कहाँ ला दिया,
उस पीपल की छाँव से दूर ,
उस रेहट की आवाज से दूर,
यहाँ क्षितिज का पता नही चलता,
मिटटी की सौंधी खुशबू नहीं मिलती ,
नाही गुड की मीठी गंध ,
रन्जिश भरे समाज में कहाँ ला दिया?
जिन्दगी तुने मुझे कहाँ ला दिया..................

अब उस पीपल की छाँव याद आती है,
उन सखायो से झगड़े याद आते हैं,
याद आते है वो दिन जब हम गाते थे,
माँ से दूर खेलने भाग जाते थे,
आज वो माँ याद आती है, सखा याद आते हैं,
क्यूँ वो सब छोड़ यहाँ आ गया ????
जिंदगी तुने मुझे कहाँ ला दिया....................

यहाँ बचपन कागज की कश्तियाँ नहीं देखता,
यौवन सावन के झूले नहीं देखता,
लोग बुढ़ापा देखने को तरस जाते हैं,
सावन के पहले ही बदल यहाँ बरस जाते हैं,
बच्चे माँ के दूध को तरस जाते हैं,
पैसे की आग में न जाने कितनी युवक झुलस जाते हैं,
सच सभी जानते हैं, पर पता नहीं क्यूँ,
सब छोड़ यहाँ खीचे चले आते हैं.....
पैसे में बड़ी ताकत होती है ,
वो मिटटी, देश, माँ, सखा, कुछ नहीं जानता,

तभी तो जिंदगी तुने मुझे यहाँ ला दिया,
जिंदगी तुने मुझे कहाँ ला दिया???????????????

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