Monday, May 2, 2011

ये साहिल और ये लहरे

कोई साहिल से दूर होती लहरों से पूछो,
जब लहरे आई थी क्या उमंग था,
क्या ख़ुशी थी, एक नया जोश था,
साहिल को भी पता न था,
ये जो लहरे उसके साथ हैं,
जाने उससे कितनी दूर चली जाएँगी,
चली जाएँगी ये लहरे फिर कभी ना आने के लिए, 
रोयेगा साहिल उस पल कितना सोचो जरा,
जब उसे पता चलेगा, ये लहरे उससे दूर चली गयी,
बहुत दूर.......
लहरे जो उससे दूर जा रही जरा उनकी भी बात करते हैं,
उन्हें क्या पता था उनका साहिल से मिलन क्षणिक होगा,
शायद हाँ, तभी तो कितनी तेज आई थी ये लहरे,
मिलन को बेताब ये लहरे जिन्हें दूर जाना था बहुत दूर...
ये जानते हुए भी एक क्षणिक मिलन की आस में,
कितनी उतावली थी ये लहरे, बेवस और लाचार थी ये लहरे...
क्षितिज के उस पार उन लहरों का कोई आशिक,
कर रहा है  इन्तजार, खो जाएँगी ये लहरे,
अपने आशिक के आगोश में और बेचारा साहिल,
देखता  रह जायेगा इन दूर जाती लहरों को,
जो फिर कभी ना आएँगी उसके पास,
कभी ना आएँगी उसके पास........