Wednesday, September 1, 2021

मौन की अनुगूंज

 

क्या तुमने कभी नदियों का कोलाहल सुना है?

 चिड़ियों की चहचहाहट सुनी है?

मछली बाजार के शोर से निकल गाड़ियों की आवारा आवाजें सुनी हैं?

... सुनी होंगी

भला इनमें नया क्या है!

पर सदाबहार मौसम में, ठंड वाली रात में, लू के थपेड़ों में,

अंधियारे कमरे में ,पीपल के नीचे बैठ कभी सुनी है मौन की आवाज, मौन का संगीत.....?

क्या तुमने मौन की कोई ऐसी कविता सुनी है,

 जिसके कवि भी तुम हो, श्रोता भी तुम हो,‌

लय ताल सब तुम्हारे अपने हों ..

याद करो, जाने कितने ही विवादों के बाद,  फटकारों के बाद,

असफलताओंऔर नकारों के बाद ; जाने कितनी ही बार,

मौन ही तो था जो हमेशा था, है और रहेगा तुम्हारे साथ...

कब सुनाई नहीं देती मौन की आवाज!

हमेशा से साथ साथ ही चलता रहा मौन का गीत और तुम बने रहे अनजान...

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क्या तुमने कभी देखा है, किसी को मौन अपनी पीठ पर ढोते हुए चलता?

कभी देखा है रोटी को पानी के साथ मौन हो निगलता हुआ कोई इंसान?

किसी लाचार माँ को बच्चों के लिए मौन हो देर रात पत्थर पकाता और बच्चों का खाने के इंतजार में चुपचाप सो जाना?

कभी सुन सको तो सुनना

...और देखना।

सबको अपने जीवन में देखना-सुनना ही चाहिए  मौन लोगों को;

और तौलना चाहिए कि हमारा मौन उनके मौन से किस तरह अलग है;

कम से कम एक बार...

किसी एक मजबूर इंसान से छीन लेनी चाहिए उसकी चुप्पी और भर देना चाहिए उसके गले तक इतना सुख कि वो कभी हो सके मौन....

किसी एक दिन...

अपनी तमाम छीनी हुई चुप्पियों को लेकर बैठना चाहिए और तब तलाशना चाहिए उसमें आनंद...

जो आनंद मौन के गीत में है वो और किसी कविता में नहीं, किसी गीत में नहीं, किसी संगीत में नहीं....

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