Wednesday, September 1, 2021

कॉरोना के वेग में

 

आंधियों के वेग में जो खो गया वो कौन था?
राह चलते वह पथिक जो सो गया वो कौन था?
भूख से जो गिर गया शिशु तन भला वो कौन था?
दंगे में जो जल गया यौवन बता वो कौन था?
वो कौन थी जो चल पड़ी थी मौन गठरी बांध कर,
सूखी रोटी तोड़ता बच्चा भला वो कौन था?

आंधियों के वेग में जो काल कवलित हो गया
वटवृक्ष था जोमूक होकर इस धरा में खो गया
बूढ़ी आंखों का सहारा राह चलता वह पथिक,
बहन की उम्मीद आंखों में बसाये सो गया।
वटवृक्ष की जड़ से निकल जो चाहता था पनपना,
वो शिशु था भूख से लाचार हो जो गिर गया।
दिल्ली हो या पालघर, दंगे में देह को त्याग कर,

प्रश्न जलता छोड़, निर्दोष था जो चल गया।
चेहरे को अपने दुपट्टे से छिपा, एक गोद में एक पेट में कल को बिठा,

जो मौन चलती जा रही वो आह थी


सूखी रोटी तोड़ता वह बचपना, दूध सपने सा जहां पर हो गया।

No comments: